विभास, अहमदाबाद

झलक

1

यह झलक है 

मन के सार की  
यह झलक है   
नव सर्जनहार की, साहित्य के बारे में आते हैं विचार कई,
लक्ष्य पर पहुँचे बात केवल हृदयगार की।

जला भी रहा है

बुझा भी रहा है;
दिलों में तमन्ना   
जगा भी रहा है,
दिखा भी रहा है, 
सुना भी रहा है;
पन्नो में लिखा गीत  
गा भी रहा है,
भला भी कहा है, 
बुरा भी कहा है;

जो देखा सुना है

वही तो कहा है;
बुरा मानें  
मानने वाले हजारों,
ये सत्य की ज्योति जलाने चला है।

3
गर ना आए कविता हज़ार
तो कोई बात नहीं,
लिखदेनां दिल की बातें  चार
तो कोई बात नहीं,
मन के उद्गार ही बन जाती है

कविता बार बार
तो कोई बात नहीं,
हो जाए भूल पथ पर बेशुमार
तो कोई बात नहीं,
कर लेना ज़िक्र हर एक से

भूल से की गई भूल का!
चलते चलते हो जाए सत्य स्वीकार
तो कोई बात नहीं,
विशाल है पथ ! सुदृढ़ चेतनां का !
जहां होगी हर इकरार में तकरार
तो कोई बात नहीं। --00-- 

01.10.2020


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