कवि भूषण पं. पीताम्‍बर भट्ट 'रमाधर', टीकमगढ़


टीकमगढ़ अंक, जनवरी-जून, 1998 

टीकमगढ़ की पावन भूमि (सजातीय) में महान् विद्वानों ने साहित्‍य की सरिता बहाई है एवं अनेक महान् ग्रंथों की रचना की है, जो वर्षों तक साहित्‍य जगत् में ज्ञान रश्मियों की तरह आलोकित करती रहेगी. हमारे आराध्‍य पूज्‍य, आदर्श, जिनसे हमारा परिवार धन्‍य हो गया है, ऐसे कवि भूषण पीताम्‍बर भट्ट ‘रमाधर’, पद्माकर जैसे महान् कवि के वंश में जन्‍मे थे. आपका जन्‍म चैत्र वदी प्रतिपदा संवत् 1918 को गौरिहार (म.प्र.) हुआ था. संवत् 1934 में महाराजा प्रतापसिंहजू ने आपके पिता श्री गंगाधरजी, जो स्‍वयं एक रससिद्ध कवि थे, को टीकमगढ् बुलाया था. पिता की मृत्‍यु के बाद आपको राजकवि का पद प्रदान किया गया था. साहित्‍य सेवा, संयम और सरलता से जीवन यापन करने से आपने दीर्घायु प्राप्‍त की थी. शतायु पूर्ण करने पर शरद पूर्णिमा संवत् 2018 को टीकमगढ़ नगर की तरफ से शतर्षाभिनंदन समारोह किया गया था. आपके द्वारा रचित गंथों में पहला प्रताप भूषण, दूसरा प्रताप प्रभाक, तीसरा शुकनीति उपवन विनोद हैं. इसके अतिरिक्‍त आपने अनेक स्‍फुट रचनायें लिखी थीं. आपके रचित ग्रंथों में साहित्‍य शास्‍त्र की मर्मज्ञता का सुपरिचय प्रमाप भूषण ग्रंथ से मिलता है, जिसमें आपने 108 अलंकारों के लगभग 500 छंदों में सरस, सरल किंतु विद्वत्‍तापूर्ण विवेचन किया था. महान् कवि पद्माकरजी की रचना ‘वनन में बागन में नगरी बसन्‍त’ से प्रभावित हो कर आपने भी रचना की थी-
मन में मनोज में मलिन्‍द मकरन्‍दन में
मालती मयंक मौज महिमा अपार है.
नद में नदी में नंदनंदन निवासहुँ में,
श्‍लेष, उपमा, उत्‍प्रेरणा का सरस प्रयोग आपकी रचना में मिलता है, जिसमें श्‍लेष वर्णन तो दर्शनीय है-
भूभृत सुखद हरि हिय में विराजमान
नीरज सो राजमान आनन्‍द अछुद्र को.
वेला सौं बलित अंग-ललित अनंग रिपु
गंग सत्‍संग संग राखत न छुद्र को.
भनत रमाधर अनेक पार पावै नाहिं
बुद्धि-बल, बुद्धि-सिद्धि पालक अछुद्र को.
हौं सो कियो कवित् महेन्‍द्र वीरसिंहजू को
रुद्र को कहत कोऊ कहत समुद्र को.
शृंगार, वीर एवं शांत रस आपके वर्ण्‍य रस हैं. आपको व्रज मण्‍डल विश्‍वविद्यालय, मथुरा द्वारा 21.08.1927 को कवि भूषण की उपाधि दी गई थी. वीरेंद्र केशव साहित्‍य परिषद् ओरछा राज्‍य पद्यात्‍मक सुंदर रचना पर ‘रजत पदक’ सम्‍मान पत्र भेंट किया गया था.
सन् 03.02.1933 को स्‍वयं महाराज द्वारा उनकी रचनाओं से प्रसन्‍न हो कर वसन्‍तोत्‍सव पर उनकी तारीफ में श्री वीर वसन्‍तोत्‍सव पद्यात्‍मक सुंदर रचना भेंट की थी. 
-श्रीमती इंदुप्रभा तैलंग
कविभूषण भवन, बानपुर रोड, 
टीकमगढ (म.प्र.)
वंशवृक्ष विरुदावली

बृहस्‍पतिरिव श्रीमान् भृगुवंशसमुद्भव।
और्वस्‍य कुलसंजातो गोत्रे श्रीवत्‍ससंज्ञिके।।
भार्गवश्‍च्‍यवनश्‍चैव ह्याप्‍लवानौरवौ तथा।
जामदग्‍न्‍य इति प्रोक्‍त: पंचमप्रवरसंयुत: ।।
आश्‍वलायनऋग्‍वेदी पंचद्राविड संज्ञिक:।
विंद्याद्रिदक्षिणे देशे तैलंगे व्‍यंकटाद्रिके।।
गोदावरी सरित्‍तीरे भ्रदाक्षनगरोस्थिति:।
तैलंगभट्टो नाम्‍ना तु ‘श्रीदेव’  शब्दित:।।
तेजसा सूर्यसदृश्‍यो बुध्‍याचांगिरस: सम:।
श्रीविद्योपासक: सर्वशास्‍त्रार्थकुशल: कृती।।
साक्षान्‍तद्देवतारूप: काशीयात्रार्थमागत:।
कार्तराजस्‍य भाग्‍येनलब्‍ध: पुण्‍यप्रभावत:।।
गुर्वर्थे प्रार्थितो राज्ञा ह्योर्ववंशभवो भवान्।
अस्‍मद्वंशकरो राजा सगर: कोशलाधिप:।।
(प्रतापवंशार्णश्‍व ग्रंथ से 31-32)

01.10.2020

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